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Tuesday, April 27, 2010

आपसे भी खूबसूरत .. आपके अंदाज़ हैं .....


........ वे एक '' महान '' महिला हैं ... और '' स्त्रियोचित '' गुणों से परिपूर्ण हैं ...... उनकी आखों में '' संवेदन शीलता है '' ........ और वे '' सत्य '' का अनुशरण करती हैं ..... उनका ह्रदय '' निर्मल '' है और उनके व्यव्हार में मुझे कभी कोई बनावट ... कभी कोई आडम्बर नहीं दिखा .....!


............... यहाँ मैं आपका तार्रुफ़ करा रहा हूँ .... इस युग की .... एक ऐसी '' श्रेष्ठतम स्त्री '' का .....जिसे मैं हर मायने में '' आदर्श '' मानता हूँ ..... ये हैं ..... हमारी पूज्य '' भाभी श्री '' ...... श्रीमती अंजू सिंह !


जब मैंने नैनीताल की हसीन वादिओं में ... उन्हें पहली बार देखा था तो मुझे वे .... एक शांत , निर्मल , ममतायुक्त नदी की तरह लगी थीं ...... मुझे ख़ुशी है कि हमने उन्हें अपनी '' भाभी माँ '' के रूप में पाया है ! वे भैया की '' आदर्श अर्धांगिनी '' और '' हमराह '' सिद्ध हुयी हैं ! '' सिंह सदन '' और .... उसके तमाम विस्तार पटलों में ... उनकी '' असीम लोकप्रियता '' सिद्ध है ..... प्रमाणित है .... !



........'' माँ '' के लिए अगर वे '' करोड़ों में एक '' बहू हैं ..... तो हम छोटे भाइयों के लिए वे एक '' शानदार भाभी '' हैं .... जिनमे माँ और बहन के अंश " प्रचुर मात्र " में उपलब्ध हैं .... वे जहाँ एक ओर ... '' सनातन संस्कृति '' , '' महान पारिवारिक मूल्यों '' और समाज की '' आदर्श परम्पराओं '' का पालन करने वाली .......... '' धर्मनिष्ठ पारिवारिक महिला '' हैं .... वहीँ आवश्यक और अपेच्छित आधुनिक ज्ञान , विज्ञानं , तकनीकों और प्रशासन की भी जानकार हैं .... ! कला ... संस्कृति ... समाज ... साहित्य ..... सिनेमा .... संगीत .... फैशन .... हर विषय पर मेरे और भाभी के विचार काफी मिलते हैं और ..... इन तमाम विषयों पर '' सिंह सदन ''... में बेहद '' रोचक परिचर्चा '' लगातार होती ही रहती है !



बच्चों के लिए वे स्नेह वर्षा करने वाली .... '' ममतामयी माँ '' भी हैं ... और एक '' बेहतरीन शिछिका '' भी ......! सभी पारिवारिक आयोजनों , शादी - विवाहों , पर्वों - त्योहारों में वे हम भाईओं के साथ वे बढ चड़कर हिस्सा लेती हैं .... और पूरा आनंद उठाती हैं !


आज की .... '' साधारण महिलाओं '' से .. वे सर्वथा भिन्न हैं ....... उनमे '' असीम उर्जा '' है ...... घर - परिवार को जोड़ने वाली वे '' मजबूत कड़ी '' हैं .......वे काम - काज से न कभी थकती हैं और न ही भागती हैं ... वे '' बड़ों '' को भरपूर मान - सम्मान ..... और '' छोटों '' को अतुलनीय प्रेम और स्नेह देना बखूबी जानती हैं ...... मेरा अनुभव है कि उन्हें ये सारे गुण प्रकृति द्वारा '' नैसर्गिक '' रूप से प्राप्त हैं ...!



मुझे भाभी नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण ...... एक '' आध्यात्मिक '' और '' आत्मसिद्ध स्त्री '' लगती हैं ...... उन्हें जीवन के .. '' सत्य का बोध '' है .... इसलिए वे '' आडम्बर विहीन '' हैं वे सदैव " प्रसन्न चित्त " रहती हैं ...और जीवन के हर गुजर रहे क्षण को भरपूर जी लेना चाहती हैं .... वे निहायत ही संवेदन शील हैं ...... और उन्होंने कभी किसी का दिल दुखाना तो दूर ...... किसी से आज तक ऊंची आवाज़ में बात भी नहीं की है ..! गरीबों ......अपने से छोटों ....... अधीनस्थ कर्मचारिओं ...... के प्रति उनकी हमदर्दी ...... और संवेदना ने मेरी रूह पर अदभुत असर डाला है ....... और उनके इस नैसर्गिक महान गुण से मैं कितना प्रभावित हूँ ....... बता नहीं सकता ........ वे सभी की मदद को सदैव तत्पर रहती हैं ........ वे निश्चय ही ही एक ... '' आदर्श भारतीय नारी '' के रूप की इस युग की श्रेष्ठतम प्रतिक हैं !



...... मुझे याद है जब भैया - भाभी का विवाह हुआ था ..... तो दोनों ही २२ -२३ साल की अल्प अवस्था के युवा थे ...... तथापि इस '' युगल '' ने छोटी वैवाहिक उम्र से ही बेहद अनुकर्णीय ...... जिम्मेदार ..... गरिमा पूर्ण ...... आचरण से '' सिंह सदन '' के गौरव और प्रतिष्ठा को नितांत नए और बड़े विस्तृत आयाम दिए हैं ..... यही कारण है कि नई युवा और कमसिन पीढ़ी ..... इस शानदार युगल की '' सहज प्रशंसक '' बनी हुयी है ....... लाखों लोगो की दुआएं इनके साथ हैं !



.....इतने वर्षों में ...... हमे कभी लगा ही नहीं और उन्होंने भी कभी अहसास नहीं होने दिया .... कि वे एक '' दूसरे '' परिवार से आयी हैं .........हमे वे इतनी '' अपनी '' लगती हैं ..... वे इस कदर हमारे साथ घुल मिल गयीं हैं कि लगता है ........ वे जन्मों से हमारे ही साथ हैं ....... और शायद हो भी ........ !



उच्च शिक्षा प्राप्त ....... एक कामकाजी ..... प्रशासनिक अधिकारी होने ... तथा ताकतवर पारिवारिक प्रष्ठभूमि होने के बावजूद ....... वे किसी भी प्रकार के "अहं- भाव" से सर्वथा मुक्त हैं ......और एक "अच्छा इंसान" होने को ही "सार्वाधिक महत्वपूर्ण" मानती हैं ....... वे '' विनोदी स्वभाव '' की भी हैं और उनका '' सेंस ऑफ़ ह्यूमर '' लाज़वाब है ....... हम सब जब साथ बैठते हैं ...... तो '' लाफ्टर '' की नदियाँ बह उठती हैं ....... उन " अनमोल " क्षणों के आनंद का वर्णन नहीं किया जा सकता है ......... उस " असीम आनंद " का केवल अनुभव ही किया जा सकता है ! भाभी को देखकर ..... बरबस ही ..... पचास के दशक की ....... सदाबहार '' गीता बाली '' ........ और साठ के दशक की ..... संवेदनशील अभिनेत्री '' माला सिन्हा '' का अक्श उभरता है ..... वही सलीका .... वही नफासत ..... वही मासूमियत .... और वही संवेदना .. !



...... भाभी एक '' सम्पूर्ण स्त्री '' हैं ..... स्त्री के हर रूप की वे '' आदर्श मिसाल '' हैं ......... वे शब्दों के मायनों को समझती हैं और एक - एक शब्द "नाप - तौल" कर बोलती हैं ...... इस '' कठोर अनुशासन '' के साथ भी वे अपनी '' स्वाभाविक सहजता '' को कभी नहीं त्यागतीं ..... भाभी हर रूप में श्रेष्ठ हैं ..... ऐसी गौरव शाली महिला को अपनी भाभी के रूप में पाकर हम हर्षित हैं ...... गौरवान्वित हैं ....... प्रकृति और ईश्वर को ...... कोटि कोटि धन्यवाद् कि उसने हमारे लिए एक '' ममतामयी '' भाभी बनायीं ...... परिवार कि एक .... '' बेहद मजबूत कड़ी '' .... को '' सिंह सदन '' का नमन .. ! !


* * * * * PANKAJ K. SINGH

Monday, April 26, 2010

एक यादगार शादी ......................हृदेश परिणय प्रिया



अभी हाल ही में ११ फरवरी को

सिंह सदन के आंगन में एक भव्य

समारोह का आयोजन हुआ !

यह आयोजन हमारे छोटे भाई ह्रदेश की शादी थी शादी का जश्न

कुछ एसे मनाया गया किये एक यादगार शादी बन गयी जैसे ही शादी की डेट फ़ाइनल हुई सभी रिश्तेदरो में मनो बहार आगयी हो हर तरफ ख़ुशी का माहौल और तैयारियों का सिलसिला चरम पर था शादी की बागडोर संभाली हमारे आदरणीय बड़े भैया पवन जी ने जो लाखों व्यस्तताएं होने के बाबजूद भी एक हफ्ते पहले घर पहुंचे और शादी का पूरा प्रारूप तैयार किया हर छोटी से छोटी चीज़ का उन्होंने ध्यान रखा और अपने सुपरवीजन में युवाओं की एक मजबूत टीम तैयार की और सब को अपने अपने कम बाँट दिए गए

बड़े भइया के बारे में क्या कहूँ - में समझता हूँ की उनसे अच्छा काम कोई कर ही नहीं सकता चाहे वह किसी तरह का हो

अगर मुझसे पूछा जाये तो उनसे ज्यादा बुद्धिजीवी उनसे ज्यादा अच्छा इन्सान में किसी को नहीं समझता भइया जब हमारे साथ होते है तो लगता ही नहीं की वे इस देश के बेहतरीन -आई.ए.एस. आफीसर है........... एसा लगता है जैसे बचपन में भैया के साथ शरारत किया करते थे क्रिकेट खेला करते थे पानी के बतासे खाने देवीरोड सोहन के यहाँ जाते थे आज भी वैसा ही है शहर बदल गया मगर

भैया नहीं बदले ..........आज भी अपने भाईयों पर जान छिड़कते है .....................

खैर मै विषय पर आता हूँ भैया की इस टीम में श्यामू ,संदीप ,दिलीप, टिंकू, चिंटू, , आदि मुख्या भूमिका में थे

सभी ने भैया की तत्वावधान में काम करना अपना सौभग्य समझा और दिलो जान से काम किया

भैया जब भी कोई काम करते है तो उसमे कमी का सवाल ही पैदा नहीं होता शादी के पहले महिला संगीत का आयोजन बहुत भब्यता से हुआ जो भी महिलाये महिला संगीत में आयीं उन्होंने

कहा की इस तरह का महिला संगीत मैने पहली बार देखा है

हर प्रोग्राम में नया पन था महिला संगीत के बाद जो पुरुष संगीत का कार्यक्रम हुआ तो मजा ही आगया

रात्रि कब कट जाती थी पता ही नहीं चलता दिन में फिर उसी उत्साह से काम ......!

हमारे यहाँ बड़ी धूम धाम से एक रश्म होती है भात की ...........भात दरसल एक सम्मान होता है जो मान पक्ष को दिया जाता है इस बार भात की रश्म यादगार बन गयी जिस का श्रेय जाता है हमारे बड़े भैया के ससुर साहब माननीय संत साहब को

इस तरह की भात की रश्म मैने क्या जिसने भी देखा यही कहा एसा पहली बार देखा है .....

यूंतो भात सिर्फ दामाद और बेटी के लिए होता है मगर संत साहब इतने सामाजिक इन्सान है जिसका वर्णन यंहां

नहीं किया जा सकता ...... उन्हों ने भैया से पहले पूरे परिवार को ही नहीं वल्कि सारे रिश्तेदरों को भात पहनाया

और इतने सम्मान से जैसे उन्हें सब का सम्मान करने में फक्र महसूस हो रहा हो देखने वालों ने तो यंहां तक कहा

की एसा भात या तो .....नरसी ने पहनाया था या संत साहब ने

संत साहब के बारे में मै संक्षेप मै बताना चाहूँगा वे सेवानिवृत आई .ए. एस आफ़िसर है और वे और उनके पुत्र राजेश भैया

बहुत ही सामाजिक इन्सान है किसी भी कार्यक्रम मे हजारों व्यस्तताओं के बाबजूद बढ चढ़ कर भाग लेते है बहुत ही महान इन्सान है

हमारा पूरा परिवार उनका बहुत सम्मान करता है

"ऐसे महान संत साहब को मै प्रणाम करता हूँ"

आज वो दिन आही गया जिसका दुल्हे को इंतजार था सभी रिश्तेदार पहुँच चुके थे

बारात की तैयारी जोर शोर से चल रही थी भैया हर एक चीज को दौड़ दौड़ कर से स्वेम देख रहे थे ताकि कहीं कोई कमी न रह जाये देश का कोई भी कोना एसा नहीं था जहाँ से लोग न आये हों

सभी छोटे बड़ों का स्वागत भैया आप ही कर रहे थे बारात जब सज कर निकली तो सबसे पहले तैयार हुए हमारे सिंह सदन के आइकॉन .........

हमसब के प्यारे भैया मिस्टर स्मार्ट पंकज सिंह ................उन्हें देखते तो एसा लगरहा था कि कहीं उन्हें किसी की नजर न लगजाये सब की नजरें उनपर थी ६ फिट की हाईट और गजब की पर्सनालिटी वहीँ हमारा छोटा भाई हम सभी भाइयों का प्यारा आज्ञाकरी, बुद्दिमान, बहुमुखी प्रतिभा का धनी ........श्याम कान्त

तो एसा लगरहा था कि पूछो मत बेहद सुन्दर ...................


मगर इन सब से अलग हमारे बड़े भैया ......को तो देखते ही बन रहा था जैसे उन्हें सजने की जरुरत ही न हो बिलकुल सरल अंदाज चेहरे पर इतना तेज़
जिसे देख कर किसी की भी नजर फिसल सकती थी ..............मगर हमारी भाभी भी जी

कहाँ पीछे रहने बाली थी हूबहू ...काजोल... लगरही रही थी मानो शारुख....और काजोल की जोड़ी हो
और हमारा दूल्हा भी बिलकुल राज कुमार लग रहा था ...........................
बारात जैसे ही निकली ढोल नगाड़े और बंदूकों की आवाजों से आकाश गूंज उठा कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था
बारात की कतार लगभग २ किलोमीटर लम्बी थी चूँकि ये शादी लोकल की थी इस लिए भीड़ तो लाजमी थी
और यादव पेट्रोल पम्प से जो डांस का सिलसिला चला वह रुकने वाला नहीं था बच्चों से बूढ़े तक डांस में मस्त थे हमारे छोटे भाई श्यामू ने तो हद ही कर दी बहुत ही जोरदार डांस किया बगैर रुके
बड़े भइया और भाभी तो मैदान में ऐसे उतरे की शमां बांध दिया
मगर हमरे आइकॉन पंकज भैया पीछे रहने वाले नहीं थे ........बिलकुल नए अंदाज में
डांस कर रहे थे बिलकुल बप्पी दा इस्टाइल में
बारात गेस्ट हॉउस पहुची जहाँ लोग हमारे स्वागत के लिए ऑंखें बिछाए खड़े थे
मालाओं से बारातियों के गले लाद दिए गए लोगों ने जब दुल्हे को देखा तो निहाल हो उठेभोजन की व्यबस्था एसी की सब के मुंह से वाह...........वाह निकल रहा था
मगर अब जो हने वाला था वह मैनपुरी की जनता के लिए निश्चित ही अनोखा था जैमाल का कर्यक्रम शंखनाद घंटों की ध्वनी के साथ राउंड स्टेज पर किया गया
स्टेज पर खड़े वर वधू राजकुमार और राजकुमारी लग रहे थे
सभी ने वर वधू को आशीर्वाद दिया वर वधू को आशीर्वाद देने के लिए
सांसद शाहजहांपुर सांसद इटावा और सभी पड़ोसी जिलों के प्रसाशनिक अधिकारी पहुंचे
पूरी रात बारात के मजे लिए गए सुबह ८ बजे जब बिदा हुई तो सभी कि ऑंखें नम थी
इस वक़्त परमै समझता हूँ हर इन्सान कि ऑंखें नम हो ही जाती है
क्योंकि एक लड़की अपना सब कुछ छोड़ कर एक नए घर के लिए विदा होती है अव जोर का हंगामा होने वाला था बारात घर पहुंची तो दुल्हन का स्वागत गाजे बजे के साथ
किया गया और फिर जो डांस का सिलसिला चालू हुआ वह थमने वाला नहीं था पूरी टीम थकी होने के बाबजूद डांस के लिए उतर पड़ी मगर असली मजा तब आया जब दूल्हा डांस के इस माहौल मै शामिल हुआ......मानो उसको हर ख़ुशी मिल गयी हो
सबसे मजेदार बात यह रही कि शादी मे किसी तरह का कोई व्यवधान नहीं आया........ जो कम ही होता है पूरी शादी एक आदर्श शादी सिद्ध हुई जिसका पूरा श्रेय जाता है हमारे बड़े भैया माननीय पवन जी को जिन्हों ने रात दिन एक कर दिया और एसा करिश्मा वही कर सकते थे क्योंकि वे इन्सान नहीं अवतार है वे जिस काम को हाथ मे लेते है उसे इस तरह करते है कि कुछ कमी का सवाल ही नहीं उठता

इस शादी को यादगार बनाने मे पूरी सिंह सदन की पूरी टीम का योगदान है जिसमें -पंकज भैया,प्रमोद भैया, श्यामू,दिलीप,संदीप,राकेश जीजा ,विमलेश जीजा, टिंकू, बबलू भैया ,रबी. चिंटू,प्रमुख थे

बच्चे कहाँ पीछे रहने वाले थे इशी ,लीची ,अंशु ,गौरी,कौशल ,अक्षत,अदिति,निक्की ने जम कर शरारत की और पूरा आनंद लिया

गतिविधियाँ के लिए - पुष्पेन्द्र सिंह

....... ख़ुशी मिली इतनी .... कि दिल में न समाये .....


.......... पूरे एक माह तक ..... मानो पूरा मैनपुरी ... इस विवाह आयोजन के सुरूर में .. डूबा रहा ......... और '' सिंह सदन '' के सदस्यों में इस बहु प्रतीक्षित विवाह समारोह को लेकर बेहद उत्साह देखा गया .... सिंह सदन में महीने भर तक हंसी - ख़ुशी ..... मस्ती ....... हंगामे का जबरदस्त माहौल बना रहा ...... '' गोद भराई '' , '' रोका '' , '' सगाई '' , '' लग्न '' सभी आयोजन बेहद भव्य परंपरागत एवं सुरुचि पूर्ण ढंग से हर्षोल्लास के वातावरण में संपन्न हुए !

....... इस विवाह से दोनों ही पक्ष बेहद हर्षित थे .......... हैं ....... और रहेंगे ......... इस विवाह समारोह से '' सिंह सदन '' को एक अति गुणी ...... सुशील ......... संस्कारवान ...... मर्यादित .... प्रसन्नचित ....... प्यारी बहु ... '' प्रिया '' की प्राप्ति हुयी है ........ ! '' प्रिया '' ने अपने उच्च कोटि के व्यव्हार से '' सिंह सदन '' के सभी बड़े छोटों को प्रभावित और आकर्षित किया है .....!

....... निसंदेह '' प्रिया '' ने '' सिंह सदन '' को गौवान्वित किया है और ........ हम सभी उन्हें पाकर हर्षित हैं ! विवाह का आयोजन .......... इतना '' भव्य '' और '' प्रसन्नता पूर्ण '' था ..... की इस विवाह की याद हमारे जेहन में '' ताउम्र '' रहेगी ....... भैया और मैंने इस विवाह को बेहतरीन ढंग से सम्पादित करने के लिए ........ हर '' छोटी - बड़ी बात '' का ध्यान रखा ... इस आयोजन को सम्पादित करते हुए हम दोनों को बड़ी '' आत्मिक संतुष्टि '' प्राप्त हुयी ......... !

............" ये '' सिंह सदन '' परिवार की अब तक की ... '' सर्वश्रेष्ठ शादी '' रही ''- - - यह प्रतिक्रिया हमे गौरवान्वित करती है ... संतोष देती है ....

इस आयोजन में '' मम्मी '' की कयादत में '' अम्मा '' , '' जिया '' , '' छोटी मामी '' , '' भाभियाँ '' , '' मामियां '' , '' दीदियाँ '' सभी पूरी तयारिओं से लगी रही ........... वहीँ '' यूथ ब्रिगेड ''- श्यामू ... संदीप ...दिलीप ..... पिंटू .... टिंकू .... सुभाष ..... चिंटू .... बिटिया ..... जोनी ..... इशिका .... लीची की मस्ती हल्ले गुल्ले से सिंह सदन खिल उठा '' जीजा श्री '' , '' बड़े '' और '' छोटे मामा '' ने सभी जिम्मेदारिओं को बखूबी निभाया ......... '' सिंह सदन '' के साथ साथ पूरा '' राजा बाग़ '' और '' मैनपुरी '' बड़े हर्ष के साथ इस आयोजन में शरीक हुआ ........

हृदेश और प्रिया ....... को '' नए जीवन '' की शुरुआत करने पर बहुत बहुत बधाई ....

PANKAJ K. SINGH

Saturday, April 24, 2010

''बाग़'' जो आज महका है .... बरसों एक माली ने अपने खून - पसीने से सींचा है ....

जाने कितने दशकों का संघर्ष है...... हमारे अनेक पूर्वजों के संचित कर्मों , पुण्यों संस्कारों का प्रतिफल है ... कि '' सिंह सदन '' रूपी बाग़ लगातार शनै:- शनै: पुष्पित - पल्लवित हुआ है...... थोडा बहुत छायादार भी हुआ है .....

अपने पूर्वजों के दिखाए सदमार्गों पर आज भी '' सिंह सदन '' कि नई पीढियां चल रही हैं ...... और शीश झुकाकर श्रद्धा पूर्वक नमन करती हैं ......... अपने उन सभी '' पूर्वजों '' , '' अग्रजों '' , '' बड़ों '' को .... जिन्होंने अपने खून पसीने से बरसों सींचकर '' सिंह सदन कुटुंब '' रूपी विशाल बाग़ को उसको आज के आकार तक पहुँचाया है .... अपने अपूर्व त्याग और बलिदान से ...... आने वाली नस्लों को एक बेहतर ज़िन्दगी का रास्ता दिखाया है ..... !


................आज इस अवसर पर हम सिंह सदन के ऐसे ही एक स्नेही..... त्यागी ..... शिल्पकार ..... हमारे '' मामा श्री '' श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अपार श्रद्धा प्रकट करते हैं......... मामा श्री अपने नाम की सार्थकता सिद्ध करते हुए कुटुंब में स्नेह प्रेम और सहकार के अदभुत प्रतीक हैं ........ बड़ों से लेकर छोटों तक उनकी लोकप्रियता सिद्ध है !


उनके हंसमुख ...... प्रसन्नचित ..... आध्यात्मिक ..... और संतुष्ट स्वभाव के सभी कायल हैं ! मामा श्री ..... यही कोई छ: दशक पहले मैनपुरी के पावन '' मेदेपुर '' ग्राम में जन्मे ... बचपन से ही वे सहकारी ..... सामाजिक प्रवृत्ति के धनी हैं ...... हर सामाजिक - पारिवारिक दायित्व को .... उन्होंने पूरी शिद्दत.... पूरी जिम्मेदारी से निभाया है ... !

...................... उनके पिता ... यानी हमारे परम पूज्य नाना श्री एक महान आध्यात्मिक संत थे ...... मैनपुरी और आस पास के कई जनपदों में उनके संत स्वभाव ........ और '' आध्यात्मिक चिंतन '' की बड़ी गूँज थी ... वे सच्चे '' सिद्ध पुरुष '' थे ........... मामा श्री में एक '' महान आध्यात्मिक परंपरा के सिद्ध ऋषि के अंश '' होना .......... स्पष्टत: परिलक्षित होता है .. वे बच्चों बड़ों सभी के साथ बेहद आत्मीय और स्नेही हैं......... हमारे ऊपर तो उनके बड़े उपकार हैं वे बचपन से ही सही मायनों में हमारे '' संरक्षक '' रहे हैं ..........आज '' सिंह सदन '' की इमारत जो खड़ी है ........ उसकी बुनियाद हमारे मामाश्री के खून पसीने ......और उनके अथक परिश्रम से निर्मित है ........!


........हमारे लिए मीलों मील से ...... रोजाना कई कई बार साइकिल से आना - जाना हमे आज भी याद आता है...... आज भी हमे जब भी ....... जहाँ भी जरूरत हो ..... वे दौड़े चले आते हैं ..........! उनसे जुडी हजारों यादें आज भी हमारी आँखें नम कर देती हैं .. कैसे और किन शब्दों में उनको धन्यवाद दूं .............. मेरे पास शब्द नहीं है ......... सिर्फ भावनाएं हैं ................ उनके निर्दोष , निर्मल , कल्याणकारी व्यक्तित्व ने मेरी रूह को कितना प्रभावित और आकर्षित किया है ......... मैं बता नहीं सकता....... क्योंकि वाणी और शब्दों की अपनी सीमायें हैं........ और कुछ विषय वर्णनातीत होते हैं ....... !

..... बचपन में हम भाइयों के बाल मन पर........... तो मामाश्री के व्यक्तित्व का इतना गहरा प्रभाव था कि हमे पुरानी हिंदी फिल्मों के शानदार चरित्र अभिनेताओं - '' बलराज सहनी '' और '' नज़ीर हुसैन '' में बस अपने ...... प्यारे मामा ही नजर आते थे ........... आज भी हम भाई ''जोनी वाकर '' को अपने मामा के ही रूप में देखते हैं ........ मामाश्री का ऐसा '' अद्वितीय प्रभाव '' हम भाइयों पर बचपन से लेकर आज तक कायम है .....!

....... मामाश्री को बचपन से ही हम अनेकानेक रूपों में देखते रहे हैं ........ कभी वे मुझे एक बेहतरीन '' डिजाईनर दर्जी '' लगते थे तो कभी '' रिश्तों के गूढ़ ज्ञाता '' , '' कट्टर परम्परावादी '' ........... कभी वे '' प्यार का सागर '' लगते तो कभी '' वैरागी सन्यासी ''... मामाश्री ने हर रूप को पूरी शिद्दत से जिया है ....... हर इंसानी धर्म और पारिवारिक जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है .......... वे महान पिता ..... आज्ञाकारी पुत्र ...... अच्छे और सच्चे नागरिक के रूप में मीलों तक ...... एक '' उदाहरण '' के रूप में यूँ ही नहीं प्रस्तुत किये जाते हैं ...... कुदरत ने भी मानो उन पर कृपा बरसाई है ...... तभी तो उन्होंने एक '' महान माता - पिता '' के यहाँ जन्म लिया ...... और समाज को अगली पीढ़ी के रूप में चार अति संस्कार वान मर्यादित संताने दी .......!


.....'' सिंह सदन '' के इस ..... '' महान ट्रस्टी ''.... '' कर्मयोगी संरक्षक '' .... और '' सिंह सदन कुटुंब '' रुपी बगिया के त्यागी - तपस्वी ....'' धर्मनिष्ठ माली '' को हमारा सादर नमन ! !


PANKAJ K. SINGH For '' TARRUF ''

Thursday, April 22, 2010

हरी वर्दी को सलाम......दुआओं के साथ !


''सिंह सदन'' के कई स्तंभो से तार्रुफ़ के बाद यह लाजिमी है कि इस फलक को ... कुछ और विस्तार दिया जाये, कुछ और लोगों से मिलवाया जाये . यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि '' सिंह सदन '' के हर एक सदस्य में कुछ न कुछ खूबियाँ हैं. मगर इसके बाद भी कुछ लोगों में ऐसी खूबियाँ हैं कि उनका नाम उन खूबियों का पर्याय बन चुका है..... आज हम नजर डालेंगे ऐसे ही एक मिलनसार व्यक्तित्व से......... इससे पहले कि इस शख्स के बारे में और विस्तार से लिखा जाए आइए नज़र डालते उनके व्यक्तित्व के उजले पहलू पर........!

" सामान्य परिवार में उनका जन्म हुआ......श्रम की महत्ता को उन्होंने पहचाना.......अपने बल पर सरकारी नौकरी पाई....... ...सामाजिक सरोकारों/रिश्तों को हर स्तर पर उन्होंने निभाया.......घर का हर त्यौहार चाहे वो दीवाली हो ,होली हो या कि रक्षा बंधन........हर त्यौहार उनके बिना अधूरा लगता है............हर घरेलू आयोजन उनके बिना अधूरा है..........अच्छे पति-भाई-पिता-मित्र के रूप में उनकी पहचान है..................परंपरागत व्यंजनों के सबसे बड़े शौकीन हैं............. अब इसके बाद उनकी शख्सियत के बारे में बताने को क्या कुछ बचता है........शायद नहीं. दावे के साथ कह सकता हूँ आप समझ ही गए होंगे कि मैं किसी और कि नहीं ...... अपने बड़े बहनोई/ जीजा श्री राकेश चंद की बात कर रहा हूँ.

1962 में जन्मे राकेश चंद (भगवान जाने उनका नाम राकेश चंद क्यों है.....राकेश चन्द्र क्यों नहीं ?) , नाम के उच्चारण की इस अपूर्णता के बावजूद उनका हर पहलू उनके पूर्ण होने की सहज उदघोषणा करता है. 1979 में आर्मी ज्वाईन की...........मुश्किल ठिकानों पर रहकर देश सेवा करते रहे.....

.... पंजाब,जम्मू-कश्मीर,नागालैंड, आसाम, उत्तरप्रदेश की विभिन्न रेजीमेंटों में अपनी नौकरी करने के बाद वे सम्प्रति मुम्बई में हैं. हर दम मुस्कुराने वाले इस शख्स का मैं इसलिए बहुत आदर करता हूँ कि उन्होंने अपने छोटे भाइयों को अपने सीमित संसाधनों के वाबजूद हर तरीके से संबल दिया, पढाया लिखाया............अपना परिवार भी उन्ही कम संसाधनों में चलाया. अपने बच्चों के पालन -पोषण में समझौता कर लिया मगर किसी सामाजिक उत्तरदायित्व में आंच न आने दी.........उनके इस आन्दोलन में उनकी पत्नी यानि उषा दी ने हर कदम साथ दिया. जब 1981 में उनकी शादी उषा दी से हुई थी तो मुझे याद है कि मैं बहुत छोटा था. जब भी मेरी उनसे मुलाकात होती थी तो वे मुझे बहुत छेड़ा करते थे........"मार गयी मुझे तेरी जुदाई....." वाला गाना जब वे अपनी ऊँगली से चुटकियाँ बजाते हुए सुनाते थे तो मैं अपने जीजा की इस अदा पर रीझ सा जाता था. खैर वक्त गुज़रता गया जीजा और हमारे सम्बन्ध मजबूत होते गए..........! आर्मी की कैंटीन से कुछ सामान जब वे हमारे लिए लाते थे और हमें गिफ्ट करते तो हमें बहुत अच्छा लगता था .......पहली बार रेडियम वाली टाटा की घड़ी जब वे लाये और रात के अँधेरे में उसकी चमक उन्होंने हमें दिखाई तो हमारा रोमांच किस पायदान पर था, शायद उसका वर्णन आज संभव नहीं है.......बस इतना समझ लीजिये कि हम सब भाई उस घडी की चमक को को रात में रजाई के नीचे घंटों देखा करते थे.........(हा... हा..... हा.......) !

जीजा के साथ हम सबके साथ जो सम्बन्ध थे वे धीरे धीरे दोस्ताना होते गए.........आज हम सब भाइयों चाहे मैं होऊं या पंकज या प्रमोद भैया या उमा, श्यामू, जोनी या पिंटू सभी से उनके रिश्ते मधुर, दोस्ताना और बहुत स्वाभाविक हैं . हर आदमी चाहे वो कितना ही बड़ा हो या कि छोटा सबको इज्ज़त देने की उनकी आदत उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर स्थापित करती है........ !

मृदु भाषी जीजा कि एक अन्य पहचान उनकी कर्मठता भी है. उनकी कर्मठता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी छोटी नौकरी से न केवल अपना घर बनाया.......बल्कि अपने भाइयों को यथा संभव नौकरी पर लगवाया. मकान निर्माण का जज्बा तो शायद उनकी रगों में बहता है.........मकान बनवाने के वे इस हद तक क्रेजी हैं कि आज भी जब भी वे दो महीने कि छुट्टी आते हैं घर बनवाने का काम निर्बाध और अखंड रूप से करते हैं........इसके अलावा रिश्ते- नातेदारियों में जाकर मेहमानी का भी लुत्फ़ उठाते हैं. देशी व्यंजनों......जैसे सर्राटा, हलुआ, मालपुआ, एस्से, गुटेटा, गुना, रसिआउर,पुरी में तो समझ लीजिये उनकी जान बसती है.....! शादी हो या कोई रस्म .......मान होने के नाते उन्हें तवज्जो मिलना स्वाभाविक है........और वे इसका पूरा आनंद भी उठाते हैं.......

......जीवन का आनंद का उठाना तो कोई उनसे सीखे. अब तो खैर मेले- नुमाइश नहीं रहे मगर अच्छी तरह याद है कि हमारे बचपन में जब हमारे शहर मैनपुरी में नुमाइश लगती थी तो वे हमें नुमाइश दिखने ले जाते थे और हमारी बहुत सी जिदों को पूरा भी करते थे. आज भी सारे सामाजिक सरोकारों को निभाते हुए बड़ी आसानी से अपने व्यक्तित्व की गंभीरता को बचाए हुए हैं वो अद्भुत तो है ही.........सराहनीय भी. ईश्वर से दुआ है कि जो परंपरा उन्होंने शुरू की है वो उनके तीनों बच्चे भी निभाते रहें............जीजा राकेश चंद के लिए हजारों हजार दुआएं और इस दुआओं में हम सबके हाथ खड़े हुए हैं......!

उनकी हरी वर्दी.....उजले मन और सुनहले जीवन सफ़र को सलाम करते हुए यह गीत जेहन में दस्तक दे रहा है.....

"हौसला न छोड़ कर सामना जहान का,
वो बदल रहा है देख रंग आसमान का
............यह शिकस्त का नहीं फतह का रंग है
जीत जायेंगे हम तू अगर संग है...................!"

Wednesday, April 21, 2010

''जिया''.... ओ......'' जिया''......कुछ तो बोल दो....



...पर बहुत कहने और पूछने पर भी '' जिया'' अपने लिए कभी कुछ मांगती ही नहीं ...... ''जिया'' ... हमारी पूज्यनीय ....... मामी जी .... हैं ...... पूरा सिंह सदन कुटुंब उन्हें बड़े प्यार और अपनेपन के साथ इसी नाम से पुकारता है ....... मैंने अपने जीवन काल में जिन कुछ ... अति पूज्यनीय और महानतम श्रेष्ठ महिलाओं के दर्शन किये हैं ....'' जिया'' उनमे बहुत ऊंचे स्थान पर हैं ..... मैंने वास्तव में ऐसी ऊंचे आदर्शों वाली .. ममता मयी ... त्यागी.. स्त्री नहीं देखी...!



अपने होश सँभालने से लेकर आज तक मैंने उन्हें किसी से भी अपने लिए कभी कुछ मांगते ... फरमाइश करते नहीं देखा.... ननिहाल ''मेदेपुर'' में शादी के बाद जबसे वे आईं .... शायद कोई '' चार दशक पहले'' .... तब से मेदेपुर के अलावा उन्हें कुछ नहीं भाया ...... उन्होंने अपना पूरा जीवन बड़ी ख़ुशी - ख़ुशी सास - ससुर , पति - बच्चों की सेवा - परवरिश में लगा दिया ... वे घर में सबसे पहले भोर में उठती हैं ....और देर रात तक सबकी जरूरते पूरी करने के बाद ही सोने जाती हैं ......न उन्हें महंगे कपड़ों की दरकार कभी रही .... न ही साज श्रृंगार की .... कुदरत ने ही मानो उन्हें ऐसे ..... अविनाशी गुणों रूपी आभुषानो.... से सजा दिया है !


.......परिवार के सदस्यों के लिए अपना पूरा जीवन ही मानो उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी न्योछावर कर दिया है.....सिंह सदन परिवार के हर त्यौहार ... पर्व ....शादी - विवाह पर सबसे ज्यादा सक्रिय ...... और खुश वे ही नज़र आती हैं ...... न जाने '' जिया '' किस मिटटी की बनी हैं ..... असीम उर्जा है उनमे...... वे मानो कभी थकती ही नहीं ..... परिजनों के लिए कुछ करने को.. मानो उन्हें कोई न कोई बहाना चाहिए ......!


हम भाई लोग जब बचपन में छुट्टियों में ननिहाल जाते थे तो ... मानो वे निहाल हों जाती थी ... हर समय हमे खाने को पूरी - कचौरी ..... खीर .... मठ्ठा आलू ... हमेशा तैयार ही मिलते थे .... और वो इसलिए कि रसोई में '' जिया '' की कढाई में... कोई न कोई पकवान ... बनता ही रहता था .... इसलिए वे बचपन से ही मुझे बेहद प्यारी .. ममतामयी ... माँ स्वरुप लगती रही हैं .... आज भी '' जिया '' हम सब भाईओं को वैसे ही प्रेम और स्नेह की बारिश से निहाल करती रहती हैं .....अपने सादगी पूर्ण.. अति मर्यादित.. आचार व्यव्हार के साथ '' जिया '' मानो साक्षात् देवी स्वरूप हैं .... वे वास्तव में पूजनीय हैं.... वन्दनीय हैं ....!


'' जिया '' ... अम्मा से लेकर बच्चों तक.... सभी की आँखों का तारा हैं.... सभी के दिल - धड़कन में बसी हुयी हैं ....''सिंह सदन कुटुंब'' उन्हें अपना गौरव मानता है .... हमारे ऊपर ईश्वर की महान कृपा है... कि '' जिया '' हमारी हैं ..... वे एक स्त्री की महानता... उसके अदभुत त्याग... उसके गौरवशाली आचरण... उसकी अतुलनीय ममता और वात्सल्य की.. इस युग की सर्वोत्तम प्रतीक हैं .....!



......... यूँ तो हमारे कुटुंब में मामियों के .... चरण स्पर्श नहीं किये जाते .... परन्तु ऐसी दुर्लभ .... साक्षात देवी स्वरूपा ...'' जिया '' के चरणों में .... मैं अपना शीश रखता हूँ ..... और उनसे पुरे '' सिंह सदन कुटुंब'' की और से क्षमा मांगता हूँ .... हे '' जिया '' ...हम जीवन भर तुमसे सदैव लेते ही रहे .... तुम्हारे लिए कुछ न कर सके ...... तुम्हारे प्रेम स्नेह की तुलना मैं तो हम वैसे भी कोई प्रतिउत्तर दे नहीं सकते ..... तुम कुछ मांगती भी नहीं ......!


चलते चलते तुमसे यह भी मांगता हूँ.. कि सदैव हमारी ही रहना ..... हमारे साथ ही रहना ...... इस जन्म में भी.... और इसके बाद भी अनंत जन्मों तक... प्रकृति को असीम धन्यवाद ..... कि उसने हमारे लिए '' जिया '' को बनाया.....


....संपूर्ण '' सिंह सदन कुटुंब '' की और से '' जिया '' को सादर नमन....



* * * * * PANKAJ K. SINGH

Tuesday, April 20, 2010

सिजदा शेख सलीम चिश्ती की शान में

तेरी इक निगाह पर सब कुछ लुटाने आये हैं...



27 फरवरी का दिन बेहद खास था....उस दिन में फ़तेहपुर सिकरी में था।इस दिन पूरी दुनिया हजरत मोहम्मद साहब का जन्मदिन मना रही थी. ये दिन मेरे लिए दो वजह से खास था.पहला शेख सलीम चिश्ती की पवित्र दरगाह पर था दूसरा इस मुकद्दस जगह पर मैं अपनी पत्नी के साथ था.ये मेरे लिए मेरे अरमान का पूरा होना था.जो हो चूका था....मैंने कई साल पहले ये तय किया था की कि इस दरगाह पर मैं सबसे पहले पत्नी के साथ ही आऊंगा.असल में..... मैं अपनी इस नयी जिंदगी की शुरुआत इस दरगाह से करना चाहता था.ये मेरा एक ख्वाब था.जो हकीक़त में तब्दील हो चूका था.

हज़रत शेख सलीम १४७८ से १५७२ के बीच लोकप्रिय हुए.वे चिश्तिया सिलसिले के नायाब नगीने है. ये समय हिंदुस्तान के इतिहास में मुग़ल सल्तनत के सम्राट अकवर के नाम दर्ज़ है.इस दरगाह को अकवर की जियारत से खास शोहरत मिली.शेख साहब से अकवर ने औलाद की दुआ मांगी थी.जो उसके सम्राज्य को सम्भाल सके.इस तरह की अनगिनत किस्से और कहानियाँ शेख साहब से जुड़े हुए हैं.जो फतेहपुर की सरहद में दाखिल होते ही आपसे टकराने लगते है.अरावली की पर्वत श्रखंला पर रोशन इस इलाके में एक रूहानी एहसास जिस्म में उतरने लगता है.जो शेख साहब के इस दौर में भी मौजूद होने की तस्दीक करता है.प्रिया भी इस दरगाह पर पहली बार आई थी.हम दोनों ने मिल कर शेख साहब का सिजदा किया....जियारत की....माँगा कुछ नहीं बस इस जिंदगी की इब्तदा को सलाहियत से अंजाम तक पहुचाने की ख्वाहिश उनके सामने रख दी.

.......... चादर चूमने के बाद सिर उठा तो प्रिया का चेहरा सामने आ गया. प्रिया के चेहरे पर एक चमक थी....उसकी आख़ों में हया थी...एक जुम्बिश थी.शायद ये इशारा था कि दरगाह से हमारी ख्वाहिशों के पूरा होने का सिलसिला शुरू हो चूका है.प्रिया और मैं शेख साहब की दरगाह पर सिर झुका कर बुलंद दरवाज़े से सिर उठा के निकला....अब मझे एहसास हो रहा था कि आखिर अक़बर ने इस ज़मीन को फतेहपुर सिकरी का नाम क्यों दिया....मुझे लगता है कि अक़बर ने गुजरात की जंग जीतने के बाद नहीं बल्कि यहाँ जियारत करने के बाद इस जगह का नाम फ़तेहपुर सिकरी रखा होगा.क्योंकि यहाँ आने के बाद इंसान के साथ फ़तेह शब्द जुड़ जाता हैं...जैसे अक़बर के साथ जुडा है....
*****तार्रुफ़ के लिए हकू 2

Sunday, April 18, 2010

मर्यादा पुरुषोत्तम अवतार........बड़े भैया..!

!! सुह्रंम्त्र र्युदासिं मध्यस्थ द्वेशास्य बन्धुषु !!

!! साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धि र्विशिस्यते ! !

'' गीता'' में श्री कृष्ण योग युक्त महापुरुष को परिभाषित करते हैं... कि जो समस्त जीवों में समान दृष्टि रखता है ...... मित्र , बैरी , धर्मात्मा , पापी .... सभी जिसके लिए समान हैं .. क्योंकि वह इनके स्थूल कार्यों मात्र पर दृष्टि न डालकर इनके अन्दर की आत्मा में झांकता है ...और मात्र इतना अंतर देखता है कि... आध्यात्मिक निर्माण और ह्रदय की निर्मलता ... की सीढ़ी पर कोई थोडा ऊपर है ... कोई थोडा नीचे ...परन्तु क्षमता सब में है .. अतः संपूर्ण सृष्टि में कोई भी अस्पृश्य नहीं है ......योग युक्त महापुरुष की ऐसी अदभुत व्याख्या के साकार अवतार हैं ...... हमारे अग्रज .. बड़े भैया ... मार्गदर्शक...प्रथम सदगुरू .... संरक्षक ...... श्री पवन कुमार ! !


ईश्वर की कैसी महान कृपा है की मुझ जैसे नितांत साधारण .. तुच्छ व्यक्ति को ऐसे अवतारी ... अदभुत योगी पुरुष का अनुज बनने का गौरव दिया.... भैया के विषय में कितना भी वर्णन करू...उनकी शख्शियत को शब्दों में उकेर पाना संभव नहीं है... उन्हें हम सभी महसूस करते हैं..उस सुख का अनुभव करते हैं जो उनके सानिध्य और संरक्षण में हमे प्रति पल मिलता रहता है ! अपने बचपन से ही वे मैंने उनका कवच धारण कर लिया जिसने सदैव मेरी रक्षा की .... मुझे जीवन दिया.... उनके स्नेह और कृपा का कितना वर्णन करूं ..... माँ ने अगर सांसे दी तो भैया ने धड़कने दी .... मेरा जीवन भैया के स्नेह और संरक्षण का परिणाम है .... अनंत काल तक अपने शरीर के एक - एक कतरे.... एक - एक बूँद से उनके चरण धोते रहने के बाद भी मैं उनका ऋणी बना रहूँगा .... बना रहना चाहता भी हूँ .... बड़ा असीम आनंद है इस ऋण में .... कैसे चुकाऊँ और क्यूँ चुकाऊँ ...!


इस धरती पर रहते हुए भी वे इसके प्रदूषण से मुक्त हैं ... वे सच्चे कर्मयोगी हैं और परिवार में सभी के हितैषी... प्रिय... और सम्मान के पात्र .... घर का एक - एक सदस्य उन पर जान छिड़कता है....भैया भी परिवार के सभी सदस्यों का बेहद ख्याल रखते हैं .... वे एक बेहतरीन पुत्र ... एक महान भाई.... एक शानदार पति ... एक श्रेष्ठ पिता और इससे भी बढकर एक सच्चे ... न्यायपसंद... हमदर्द इंसान हैं....!

एक योगी से एक शिष्य ने पूछा कि पृथ्वी पर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य कौन है..? योगी ने कहा - वह मनुष्य जिसने कभी किसी का दिल न दुखाया हो...... भैया इस पृथ्वी के ऐसे ही महापुरुष हैं ... मैं यह दावा कर सकता हूँ .... घोषणा कर सकता हूँ कि भैया ने आज तक किसी का दिल नहीं दुखाया..... कैसी महान घटना है आज के इस बनावटी ...मिथ्याचारी ... स्वार्थी ... अहंकारी समाज में कोई मनुष्य आदर्श.. मर्यादा ... मनुष्यता...सच्चाई के ऐसे प्रतिमान भी गड़ सकता है......... हम छोटे भाई आश्चर्य से उनके ऊँचे मापदंडों...उपलब्धियों... आदर्शों को निहारते रहते हैं ...... हमारे लिए तो वे ही आदर्श हैं...उनके आभामंडल से सिंह सदन कुटुंब रोशन है..... उनकी विशाल , सरमायेदार शख्सियत के तले हम सुकून के साथ जी पा रहे हैं .......!

भैया ही हमारे वास्तविक गुरु हैं ... जहाँ एक ओर वे अत्याधुनिक तकनीकों , प्रशासन , वित्त्व्यवस्था , विज्ञानं के ज्ञाता हैं वहीँ दूसरी ओर धर्मं शास्त्र , दर्शन , साहित्य , संगीत , लेखन में विलक्षण प्रवीणता प्राप्त हैं ... भौतिक उपलब्धियों का अहंकार उनके निर्दोष , निर्मल अन्तः करण को लेश मात्र भी छु न सका है..... वे मानो बोध प्राप्त हैं ..वे निश्चय ही संपूर्ण स्मृतिवान हैं.. उन्हें जीवन के संपूर्ण सत्य उदघटित हो चुके हैं ... वे संपूर्ण कर्मयोगी हैं ... वे कुछ भी हासिल कर सकते हैं और उसमे किंचित मात्र लिप्त भी नहीं होते ....... मुझे तो वे इश्वर का अंश लगते हैं .... उन्हें भूत , वर्तमान , भविष्य सभी का ज्ञान है ....... मैं हर पल उनका स्मरण करता रहता हूँ और सोचता भी हूँ कि उन्होंने मेरी कितनी ही गलतिओं को क्षमा किया है ....... हर मुश्किल में मैं उन्हें अपने ठीक पीछे खड़ा पाता हूँ .... मैंने न जाने उन्हें कितने दर्द दिए होंगे ... पर उन्होंने मेरी आँख से एक आंसू न गिरने दिया है.......


परिवार के संघर्ष के कठोर दिनों में भी वे वैसे ही निर्मल ह्रदय और प्रसन्न चित्त रहते थे ...... कठिन परिस्थितिओं में भी वे मुझे सदैव निर्विकार ही दिखे.... विष का उत्तर वे सदैव अमृत से ही देते रहे ...कभी किसी का अहित नहीं सोचा...कभी किसी का अपमान नहीं किया ....कभी किसी का दिल नहीं दुखाया.... बहुत कुछ सहा और किसी से न कोई शिकायत की न कोई बात गाँठ बाँधी .... बस क्षमा , स्नेह , सहकार की वर्षा ही करते रहे...... और क्या - क्या वर्णन करूं... वे वास्तव में वर्णनातीत हैं .... मैं सच्चे ह्रदय से समस्त अनुजों की ओर से अश्रुपूरित नेत्रों के साथ उनको चरणों में शत -शत नमन करता हूँ ...... ईश्वर के दर्शन तो नहीं हुए ... या हुए भैया के रूप में .....उनके साथ हम वास्तव में श्रेष्ठता .. नैतिकता.... मर्यादा और संस्कारों के दुर्लभ युग को जी रहे हैं .....अपने जीवन काल में ही मर्यादा पुरषोत्तम स्वरुप के साथ जीने का अवसर देने के लिए परमपिता परमेश्वर को कोटि - कोटि धन्यवाद देता हूँ ! !

ब्लॉग पर इस विषय पर एक महत्त्वपूर्ण आलेख भी है जो महफूज अली द्वारा लिखा गया है शीर्षक है "जज़्बा ग़र दिल में हो तो हर मुश्किल आसाँ हो जाती है... मिलिए हिंदुस्तान के एक उभरते हुए ग़ज़लकार से "( क्लिक करें)

***** PANKAJ K. SINGH