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Saturday, April 24, 2010

''बाग़'' जो आज महका है .... बरसों एक माली ने अपने खून - पसीने से सींचा है ....

जाने कितने दशकों का संघर्ष है...... हमारे अनेक पूर्वजों के संचित कर्मों , पुण्यों संस्कारों का प्रतिफल है ... कि '' सिंह सदन '' रूपी बाग़ लगातार शनै:- शनै: पुष्पित - पल्लवित हुआ है...... थोडा बहुत छायादार भी हुआ है .....

अपने पूर्वजों के दिखाए सदमार्गों पर आज भी '' सिंह सदन '' कि नई पीढियां चल रही हैं ...... और शीश झुकाकर श्रद्धा पूर्वक नमन करती हैं ......... अपने उन सभी '' पूर्वजों '' , '' अग्रजों '' , '' बड़ों '' को .... जिन्होंने अपने खून पसीने से बरसों सींचकर '' सिंह सदन कुटुंब '' रूपी विशाल बाग़ को उसको आज के आकार तक पहुँचाया है .... अपने अपूर्व त्याग और बलिदान से ...... आने वाली नस्लों को एक बेहतर ज़िन्दगी का रास्ता दिखाया है ..... !


................आज इस अवसर पर हम सिंह सदन के ऐसे ही एक स्नेही..... त्यागी ..... शिल्पकार ..... हमारे '' मामा श्री '' श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अपार श्रद्धा प्रकट करते हैं......... मामा श्री अपने नाम की सार्थकता सिद्ध करते हुए कुटुंब में स्नेह प्रेम और सहकार के अदभुत प्रतीक हैं ........ बड़ों से लेकर छोटों तक उनकी लोकप्रियता सिद्ध है !


उनके हंसमुख ...... प्रसन्नचित ..... आध्यात्मिक ..... और संतुष्ट स्वभाव के सभी कायल हैं ! मामा श्री ..... यही कोई छ: दशक पहले मैनपुरी के पावन '' मेदेपुर '' ग्राम में जन्मे ... बचपन से ही वे सहकारी ..... सामाजिक प्रवृत्ति के धनी हैं ...... हर सामाजिक - पारिवारिक दायित्व को .... उन्होंने पूरी शिद्दत.... पूरी जिम्मेदारी से निभाया है ... !

...................... उनके पिता ... यानी हमारे परम पूज्य नाना श्री एक महान आध्यात्मिक संत थे ...... मैनपुरी और आस पास के कई जनपदों में उनके संत स्वभाव ........ और '' आध्यात्मिक चिंतन '' की बड़ी गूँज थी ... वे सच्चे '' सिद्ध पुरुष '' थे ........... मामा श्री में एक '' महान आध्यात्मिक परंपरा के सिद्ध ऋषि के अंश '' होना .......... स्पष्टत: परिलक्षित होता है .. वे बच्चों बड़ों सभी के साथ बेहद आत्मीय और स्नेही हैं......... हमारे ऊपर तो उनके बड़े उपकार हैं वे बचपन से ही सही मायनों में हमारे '' संरक्षक '' रहे हैं ..........आज '' सिंह सदन '' की इमारत जो खड़ी है ........ उसकी बुनियाद हमारे मामाश्री के खून पसीने ......और उनके अथक परिश्रम से निर्मित है ........!


........हमारे लिए मीलों मील से ...... रोजाना कई कई बार साइकिल से आना - जाना हमे आज भी याद आता है...... आज भी हमे जब भी ....... जहाँ भी जरूरत हो ..... वे दौड़े चले आते हैं ..........! उनसे जुडी हजारों यादें आज भी हमारी आँखें नम कर देती हैं .. कैसे और किन शब्दों में उनको धन्यवाद दूं .............. मेरे पास शब्द नहीं है ......... सिर्फ भावनाएं हैं ................ उनके निर्दोष , निर्मल , कल्याणकारी व्यक्तित्व ने मेरी रूह को कितना प्रभावित और आकर्षित किया है ......... मैं बता नहीं सकता....... क्योंकि वाणी और शब्दों की अपनी सीमायें हैं........ और कुछ विषय वर्णनातीत होते हैं ....... !

..... बचपन में हम भाइयों के बाल मन पर........... तो मामाश्री के व्यक्तित्व का इतना गहरा प्रभाव था कि हमे पुरानी हिंदी फिल्मों के शानदार चरित्र अभिनेताओं - '' बलराज सहनी '' और '' नज़ीर हुसैन '' में बस अपने ...... प्यारे मामा ही नजर आते थे ........... आज भी हम भाई ''जोनी वाकर '' को अपने मामा के ही रूप में देखते हैं ........ मामाश्री का ऐसा '' अद्वितीय प्रभाव '' हम भाइयों पर बचपन से लेकर आज तक कायम है .....!

....... मामाश्री को बचपन से ही हम अनेकानेक रूपों में देखते रहे हैं ........ कभी वे मुझे एक बेहतरीन '' डिजाईनर दर्जी '' लगते थे तो कभी '' रिश्तों के गूढ़ ज्ञाता '' , '' कट्टर परम्परावादी '' ........... कभी वे '' प्यार का सागर '' लगते तो कभी '' वैरागी सन्यासी ''... मामाश्री ने हर रूप को पूरी शिद्दत से जिया है ....... हर इंसानी धर्म और पारिवारिक जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है .......... वे महान पिता ..... आज्ञाकारी पुत्र ...... अच्छे और सच्चे नागरिक के रूप में मीलों तक ...... एक '' उदाहरण '' के रूप में यूँ ही नहीं प्रस्तुत किये जाते हैं ...... कुदरत ने भी मानो उन पर कृपा बरसाई है ...... तभी तो उन्होंने एक '' महान माता - पिता '' के यहाँ जन्म लिया ...... और समाज को अगली पीढ़ी के रूप में चार अति संस्कार वान मर्यादित संताने दी .......!


.....'' सिंह सदन '' के इस ..... '' महान ट्रस्टी ''.... '' कर्मयोगी संरक्षक '' .... और '' सिंह सदन कुटुंब '' रुपी बगिया के त्यागी - तपस्वी ....'' धर्मनिष्ठ माली '' को हमारा सादर नमन ! !


PANKAJ K. SINGH For '' TARRUF ''

1 comment:

SINGHSADAN said...

क्या खूब लिखा भईया....बड़े मामा का सच में कोई मुकाबला नहीं है.जो त्याग उन्होंने किया उनके चेहरे से साफ़ झलकता है.सिंह सदन को आकार देने में उनका योगदान हमलोगों से छिपा नहीं है...सिंह सदन जिस ज़मीन पर खड़ा है ये उनकी ही दें है.साथ ही ये उनकी दूरदर्शिता को भी पेश करती है.जैसे मामा को हम लोगो पर पहले से ही भरोसा था..हृदेश