...पर बहुत कहने और पूछने पर भी '' जिया'' अपने लिए कभी कुछ मांगती ही नहीं ...... ''जिया'' ... हमारी पूज्यनीय ....... मामी जी .... हैं ...... पूरा सिंह सदन कुटुंब उन्हें बड़े प्यार और अपनेपन के साथ इसी नाम से पुकारता है ....... मैंने अपने जीवन काल में जिन कुछ ... अति पूज्यनीय और महानतम श्रेष्ठ महिलाओं के दर्शन किये हैं ....'' जिया'' उनमे बहुत ऊंचे स्थान पर हैं ..... मैंने वास्तव में ऐसी ऊंचे आदर्शों वाली .. ममता मयी ... त्यागी.. स्त्री नहीं देखी...!
अपने होश सँभालने से लेकर आज तक मैंने उन्हें किसी से भी अपने लिए कभी कुछ मांगते ... फरमाइश करते नहीं देखा.... ननिहाल ''मेदेपुर'' में शादी के बाद जबसे वे आईं .... शायद कोई '' चार दशक पहले'' .... तब से मेदेपुर के अलावा उन्हें कुछ नहीं भाया ...... उन्होंने अपना पूरा जीवन बड़ी ख़ुशी - ख़ुशी सास - ससुर , पति - बच्चों की सेवा - परवरिश में लगा दिया ... वे घर में सबसे पहले भोर में उठती हैं ....और देर रात तक सबकी जरूरते पूरी करने के बाद ही सोने जाती हैं ......न उन्हें महंगे कपड़ों की दरकार कभी रही .... न ही साज श्रृंगार की .... कुदरत ने ही मानो उन्हें ऐसे ..... अविनाशी गुणों रूपी आभुषानो.... से सजा दिया है !
.......परिवार के सदस्यों के लिए अपना पूरा जीवन ही मानो उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी न्योछावर कर दिया है.....सिंह सदन परिवार के हर त्यौहार ... पर्व ....शादी - विवाह पर सबसे ज्यादा सक्रिय ...... और खुश वे ही नज़र आती हैं ...... न जाने '' जिया '' किस मिटटी की बनी हैं ..... असीम उर्जा है उनमे...... वे मानो कभी थकती ही नहीं ..... परिजनों के लिए कुछ करने को.. मानो उन्हें कोई न कोई बहाना चाहिए ......!
हम भाई लोग जब बचपन में छुट्टियों में ननिहाल जाते थे तो ... मानो वे निहाल हों जाती थी ... हर समय हमे खाने को पूरी - कचौरी ..... खीर .... मठ्ठा आलू ... हमेशा तैयार ही मिलते थे .... और वो इसलिए कि रसोई में '' जिया '' की कढाई में... कोई न कोई पकवान ... बनता ही रहता था .... इसलिए वे बचपन से ही मुझे बेहद प्यारी .. ममतामयी ... माँ स्वरुप लगती रही हैं .... आज भी '' जिया '' हम सब भाईओं को वैसे ही प्रेम और स्नेह की बारिश से निहाल करती रहती हैं .....अपने सादगी पूर्ण.. अति मर्यादित.. आचार व्यव्हार के साथ '' जिया '' मानो साक्षात् देवी स्वरूप हैं .... वे वास्तव में पूजनीय हैं.... वन्दनीय हैं ....!
'' जिया '' ... अम्मा से लेकर बच्चों तक.... सभी की आँखों का तारा हैं.... सभी के दिल - धड़कन में बसी हुयी हैं ....''सिंह सदन कुटुंब'' उन्हें अपना गौरव मानता है .... हमारे ऊपर ईश्वर की महान कृपा है... कि '' जिया '' हमारी हैं ..... वे एक स्त्री की महानता... उसके अदभुत त्याग... उसके गौरवशाली आचरण... उसकी अतुलनीय ममता और वात्सल्य की.. इस युग की सर्वोत्तम प्रतीक हैं .....!
......... यूँ तो हमारे कुटुंब में मामियों के .... चरण स्पर्श नहीं किये जाते .... परन्तु ऐसी दुर्लभ .... साक्षात देवी स्वरूपा ...'' जिया '' के चरणों में .... मैं अपना शीश रखता हूँ ..... और उनसे पुरे '' सिंह सदन कुटुंब'' की और से क्षमा मांगता हूँ .... हे '' जिया '' ...हम जीवन भर तुमसे सदैव लेते ही रहे .... तुम्हारे लिए कुछ न कर सके ...... तुम्हारे प्रेम स्नेह की तुलना मैं तो हम वैसे भी कोई प्रतिउत्तर दे नहीं सकते ..... तुम कुछ मांगती भी नहीं ......!
चलते चलते तुमसे यह भी मांगता हूँ.. कि सदैव हमारी ही रहना ..... हमारे साथ ही रहना ...... इस जन्म में भी.... और इसके बाद भी अनंत जन्मों तक... प्रकृति को असीम धन्यवाद ..... कि उसने हमारे लिए '' जिया '' को बनाया.....
....संपूर्ण '' सिंह सदन कुटुंब '' की और से '' जिया '' को सादर नमन....
* * * * * PANKAJ K. SINGH
3 comments:
ऐसे चरित्र के स्मरण मात्र से मन हर्षित हो जाता है।
हमें अपने जीवन में आए ऐसे महानआत्माओं को सदैव याद करना चाहिए।
मेरी ओर से भी सादर नमन।
अच्छी पोस्ट।
-बधाई।
भैया
बहुत ही बेहतरीन पोस्ट लिखी आपने
जिया के बारे में जो भी लिखा एकदम सत्य
है | उन्होंने आपने जीवन में आपने किसी दिल नहीं दुखाया |
और सरे रिश्तो नातो को बखूबी निभाया और कभी किसी चीज़ की कोई
चाहत नहीं की | मनो उन्हें हर चीज़ से बैराग हो|
ये पंक्तियाँ लगता है उन्ही पर लिखी गयी है ...............
"दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले "
इतना बड़ा दिल है की सब को मांफ कर देती है |
कोई भी सख्श परिवार का हो या गाँव का उनकी बुराई करना तो दूर
सुन भी नहीं सकता |
में ईश्वर को कोटि कोटि धन्यवाद देता जो मुझे इतनी महान मां का पुत्र
कहलाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |
में जिया के चरणों में बारम्बार प्रणाम करता हूँ | और इस्वर से प्रार्थना करता हूँ की हर जन्म
में जिया में तुम्हारा बेटा बनू |
भइया में आपको भी इस बेहतरी तारुफ़ के लिए प्रणाम करता हूँ |
"जिया".........वो जादू है जो सिंह सदन के हर सदस्य के सर चढ़ के बोलता है. त्याग शायद उनका दूसरा नाम है.......एक ऐसी महिला जिसने आदर्शों को जीवन में ऐसे समेट लिया है कि कोई काम वे इसलिए नहीं करतीं कि वो आदर्श कहता है, दरअसल वो जो करती हैं वही आदर्श होता है. उनके सामान्य से चेहरे के पीछे असाधारण त्याग, प्यार ,ममत्व और जिन्दगी से जद्दोजहद का वो हौसला छुपा है जो 'मामी' और 'मम्मी' के फर्क को कम से कमतर कर देता है........!
पंकज तुमने जो भी लिखा है एक दम सच और सही लिखा है............तुम्हारे बिना और कोई शायद उन पर इतनी शिद्दत से कोई और लिख भी नहीं सकता था.........!
शत शत नमन तुम्हे जिया......
मैं तो यही कहूँगा......."जिया.......तुमने सही मायनों में जीवन को जिया है.....!"
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