सिंह सदन से शीला देवी लिखती हैं कि शिष्टाचार का महत्व क्या है!
शिष्टाचार मनुष्यता की सबसे बड़ी पहचान है। मनुष्य को मनुष्य की तरह ही रहना ही शोभा देता है। परमात्मा ने मनुष्य को विशेष रूप से बुद्धि विवेक का बल दिया है ताकि वह अपनी जड़ता का परिष्कार करके सुन्दर एवं सभ्य बन सकें। शिष्टाचार जीवन का वह दर्पण है जिसमे हमारे व्यक्तित्व का स्वरुप दिखाई देता है। इसके माध्यम से ही मनुष्य का प्रथम परिचय समाप्त होता है। अच्छा हो या बुरा इसका दूसरों पर कैसा प्रभाव पड़ता है यह हमारे व्यव्हार पर निर्भर करता है। जो हम दूसरों से करते हैं वह व्यव्हार की रीति है, जिसमे व्यक्ति स्वयं समाज की आंतरिक सभ्यता एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं। परस्पर बातचीत से लेकर दूसरों की सेवा, त्याग, सम्मान , भावनाएं आदि तक शिष्टाचार में आ जाते हैं। शिष्टाचार व्यवहार का नैतिक मापदंड है। जिस पर सभ्यता एवं संस्कृति का भवन निर्माण होता है। एक दूसरे के प्रति सद्भावना सुहानुभूति सहयोग आदि शिष्टाचार के मूल आधार हैं। इन मूल भावनाओं से प्रेरित होकर दूसरों के प्रति नर्म, विनयशील, उदार आचरण ही शिष्टाचार है।
शिष्टाचार का क्षेत्र उतना ही व्यापक है जितना हमारे जीवन व्यवहार का समाज में! जहाँ - जहाँ भी हमारा दूसरे व्यक्तिओं से संपर्क होता है वहां शिष्टाचार की जरूरत की जरूरत पड़ती है। घर में छोटे से लेकर बड़े सदस्यों के साथ सभी जगह हमें शिष्टाचार की आवश्यकता पड़ती है। आज कल समाज में अशिष्टता की व्यापक रूप से वृद्धि होती जा रही है। जोकि हमारे देश और समाज के लिए एक अभिशाप। आज समाज और परिवारों में व्यक्ति एक दूसरे के प्रति सम्मान आदि का कोई ध्यान नहीं रखता। अधिकाँश व्यक्ति अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर दूसरों के साथ मनमाना व्यवहार करते हैं। जो कि अशिष्टता की श्रेणी में आता है। अशिष्ट आचरण लोगों में सहज ही देखा जा सकता है। गुरुजनों तथा परिवार में वृद्धिजनों का सम्मान आदर करने और पैर छूने की परम्पराएँ समाप्त होती जा रही हैं। आज के शिक्षित और सभ्य कहे जाने वाले लोग इसमें अपना अपमान समझते हैं। भौतिकता की चकाचौंध में स्वयं को आधुनिक कहलाने वाली पीढ़ी में यह सब देखने को मिल जाता है। यदि प्रत्येक अभिभावक अपने बच्चों में तथा स्वयं में शिष्टाचार लायें और शिष्टाचार के महत्व को समझे तो निश्चित रूप से समाज एवं परिवार का निर्माण हो सकेगा।
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