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Friday, December 30, 2011

बावस्ता....

दिल को
हो जाता है
किसी चेहरे से ऐसा बावस्ता
जब भी आँखें खोलूं  या मूंदू
उसका ही अक्स नजर आता है .....
कोई कहीं  एक बार मिला था लेकिन
वो है ख्यालो की रहगुजर में
वही डगर में, वही सफ़र में
धड़कते-मचलते दिल में
अभी-भी..... !!
शफ्फाक कवल-सी एक मूरत
चलते-फिरते  मिल जाती है
ठौर ठिकाना पूंछा
तो 
पाकीजा आँखों से कहती है
बावस्ता... 

-सचिन सिंह 

[पूज्य गुरु, पथप्रदर्शक .... पवन चाचा जी , अंजू चाची जी से मेरे  "बावस्ता (लगाव, जुड़ाव)"  को समर्पित]
 

2 comments:

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बहुत खूब सचिन
जिन पावन चरणों की तुमने बात की है और
यदि ये सत्य है दिखावा नहीं है तो फिर तुम निसंदेह सही रस्ते जा रहे हो
तुम्हारे साथ मै भी उन श्री चरणों में अपना सर रखता हूँ |
"जिनका है पावन निर्मल मन
उनका है सिंघम नाम "पवन"
(यहाँ पर सिंघम शब्द का प्रयोग सिंह सदन के समस्त व्यक्तियों के लिए किया गया है )

SACHIN SINGH said...

poojya pintu chacha ji..... main toh
bas itna janta hoo ki jaha prem hai
waha dikhabe ki jaroorat hi nahi.

Pawan chacha ke roop maine ek mahan
insaan ko apna GURU banaya hai...
aur paawan charno mein samarpit hona janta hoo.... PAWAN CHACHA SE MERA bavsta hai.....aur antim saans tak rahega.

SACHIN SINGH