तितलियों के पंखो पर जागते सवेरे है,
नर्म-2 लम्हों की रेशमी-सी टहनी पर
परिंदों के गीतों के खुशनुमा बसेंरे है ,
फिर मचलती लहरों पर नाचती किरणों ने
आज बूँद के घुघरूं दूर तक बिखेंरे है ,
सच के झीने आँचल में झूठ यूँ छिपा जैसे
रोशनी के झुरमुट में सावले अँधेरे है,
डूबे हुए स्याही में जो लफ्ज-2 है
मेरी गजल में उन आंसुओं के फेरे है .....
सचिन सिंह
2 comments:
बहुत ही अच्छे नाज़ुक शब्दों से सजी यह ग़ज़ल अभिव्यक्ति के हिसाब से दुरुस्त है......! दीवाली के माहौल में इस तरह की ग़ज़ल ने दिल जीत लिया.....!!
सूरज की हथेलियों पर खुशबुओं के डेरे है
तितलियों के पंखो पर जागते सवेरे है,
PK
acchi gazal
badhai
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