"........मैं ईंट गारे वाले घर का तलबगार नहीं,
तू मेरे नाम मुहब्बत का एक घर कर दे !.................."
कन्हैया लाल नंदन ने यह शेर जिस भी परिस्थिति में लिखा हो....मगर "सिंह सदन" के लिए यह मुकम्मल शेर है. रिश्ते सिर्फ संबोधन के लिए ही नहीं होते.....वे दरअसल जीने के लिए होते है......हर आदमी कभी किसी देहलीज़ पर भाई है तो किसी दर पर पति....हर औरत कहीं बहन है तो कहीं माँ......इन्ही रिश्तों में रची बसी कायनात को एक छत के अन्दर जिए जाने की कवायद ही है घर......."सिंह सदन" भी इसी कवायद का एक हिस्सा है........."सिंह सदन " से जुड़े हर एक शख्स और हर एक गतिविधि से परिचय करने के लिए ही ब्लॉग का सहारा लिया गया है ताकि जो भी लिखा जाए वो दिल से लिखा जाये.....और दिल से ही पढ़ा भी जाए.......!
साथियों ..... आज फिर से आपको ''समस्या हल'' की रोचक दुनिया की सैर पर ले चलते हैं ! चित्र को देखिये और बताइए की ये दो परम मित्र आपस में क्या बतिया रहे हैं !
ऐसा लग रहा है कि किसी कैजुअल मूड में पार्थ और कृष्ण बैठे हों और गुरु द्रोण के बनाये हुए व्यूह को तोड़ने का जिक्र और स्ट्रेटेजी प्लान कर रहे हों. ( जय हो भगवन.... इन दोनों मूर्तियों का फोटो लेने वाला छायाकार भी धन्यवाद का कम पात्र नहीं....).
बहुत ही सुंदर एवं मनोहारी दृश्य छायाकार की निश्चित तौर पर तारीफ करनी होगी उत्तर - सुभाष ने कुछ कहा है और श्री पंकज सिंह उनकी बात का समर्थन इस तरह कर रहे है मनो वह खुद भी वाही बात बोलना चाहते हों इस सुन्दर पोस्ट के लिए भैया प्रणाम स्वीकारें
(गुरु देव के महल क़ि चका चोंध देखकर) सुभाष - गुरु जी ये क्या आपने तो महल बनबा दिया है गुरु जी -महल नहीं बच्चे इसे कुटिया कहते है किन्तु तू मूढ़ बुद्धि कहाँ समझेगा पास रहे तो क्या हुआ समझे ना ही बैन| और तूने तो समझी नहीं लोग समझ गए सैन ||
5 comments:
ऐसा लग रहा है कि किसी कैजुअल मूड में पार्थ और कृष्ण बैठे हों और गुरु द्रोण के बनाये हुए व्यूह को तोड़ने का जिक्र और स्ट्रेटेजी प्लान कर रहे हों. ( जय हो भगवन.... इन दोनों मूर्तियों का फोटो लेने वाला छायाकार भी धन्यवाद का कम पात्र नहीं....).
PK
बहुत ही सुंदर एवं मनोहारी दृश्य
छायाकार की निश्चित तौर पर तारीफ करनी होगी
उत्तर - सुभाष ने कुछ कहा है और श्री पंकज सिंह उनकी बात का समर्थन इस तरह कर रहे है
मनो वह खुद भी वाही बात बोलना चाहते हों
इस सुन्दर पोस्ट के लिए भैया प्रणाम स्वीकारें
PKSTIGER - माना की सुभाष बाबू कि तुम बहुत कुबद्डा आदमी हो फिर भी मै तुम्हे ज्ञान से रूबरू कराने के लिए आध्यात्म रूपी सरोवर में डुबोने जा रहा हूँ किन्तु ये याद रखना ये ज्ञान तुम्हे मौत के बाद ही मिल सकेगा
सुभास बाबू - मै आपकी बात से सहमत हूँ गुरुदेव ये ज्ञान मौत के पहले मिले या बाद में इससे फर्क नहीं पड़ता लेकिन कल रात 12 बजे मैं जंगलों में जिसके पीछे भागा जा रहा था, वो कौन थी ????
PKSTIGER - वो मरहूम तुम्हारी सडूआइन थी
सुभास - क्या वाकई ! ओ हो ...........
श्यामकांत
सुभास
(गुरु देव के महल क़ि चका चोंध देखकर)
सुभाष - गुरु जी ये क्या आपने तो महल बनबा दिया है
गुरु जी -महल नहीं बच्चे इसे कुटिया कहते है
किन्तु तू मूढ़ बुद्धि कहाँ समझेगा
पास रहे तो क्या हुआ समझे ना ही बैन|
और तूने तो समझी नहीं लोग समझ गए सैन ||
सुभाष -सच गुरूजी
गुरु जी - सोलह आने सच |
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