रिश्तों में दरार आयी
रिश्तों में दरार आयी
याद वो दिन जब हाथ मिले थे
तुम भी खुश थे हम भी खुश
फिर लुलाकात का दौर चला
घर आना जाना शुरू हुआ
तुम अलग लगे कुछ खास लगे
विश्वास के पालन हार लगे
सब कुछ कितना मनभावन था
फिर दिलों के प्यार की छाँव
तले
खुशियों में रिश्ते फूले
फले
कुछ वक्त की एसी हवा चली
एक दूजे से उम्मीद बढी
फिर तेरा मेरा शुरू हुआ
लालच सर चढ कर बोल उठा
एक दूजे की कमियां दिखने
लगीं
पैसे का काला रंग दिखा
नजरों से नजरें दूर हुई
उम्मीदें टूट के बिखर गयी
अब वो भी नजर नही आते
हम खुद भी वक्त नहीं पाते
खुशियों की फसल है मुरझाई
रिश्तों में दरार आयी |
पुष्पेन्द्र “पुष्प”
2 comments:
उम्मीदें टूट के बिखर गयी
अब वो भी नजर नही आते
हम खुद भी वक्त नहीं पाते
खुशियों की फसल है मुरझाई
रिश्तों में दरार आयी
रिश्तों में जब लालच और स्वार्थ जन्म ले लेता है तो उसका अंत यूँ ही होता है. मानवीय रिश्तों को समझाना और उन्हें पारिभाषित करना आसान नहीं होता, एक समझदार और संवेदनशील व्यक्ति ही इसे महसूस कर सकता है. " जिसको देखो उसके पास ये दुःख भरी कहानी है......" यह रिश्तों का सच है मगर मुझे लगता है कि हम दूसरों पर लांचन लगा तो देते हैं खुद को भी क्यूँ नहीं परखते कि हमने रिश्तों को सहेजने में कितनी जिम्मेदारी निभाई. बहरहाल एक सच्चाई बयां करती इस कविता पर बारम्बार प्यार.
PK
dear pushp..
this is a master piece.. great imotions n reality of relations ..i have ever read .. great job ... proud of u ..with lot of love n blessings
**** PANKAJ K. SINGH
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