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Monday, May 14, 2012

राग दरबार –vol-10

मात्र दिवस विशेषांक 

तू है जन्नत इस धरती पर माँ

जब मैं आया इस दुनियां में
तुने दिया सहारा
स्वागत में तूने पलकें बिछाई
थामा हाथ हमारा
आंचल से तेरे पी कर अमृत
स्वाद को जाना माँ
तू है जन्नत इस धरती पर माँ |

रातों की तेरी नींद उजाड़ी
तूने कभी न सिकवा किया
जब भी चाहा जो भी चाहा
तूने हमें दिया
तेरी ममता पर बलिहारी
दुनियां के सब सुख माँ
तू है जन्नत इस धरती पर माँ |

ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया
हर एक चीज का बोध कराया
रोना तो इश्वर से लाया
हंसना लेकिन तूने सिखाया
तू ही गुरु, तू भाग्य विधाता
तू है ईश्वर  इस धरती पर माँ
तू है जन्नत इस धरती पर माँ |

इस अनमोल त्याग के बदले
कुछ न तेरी चाहत है
बस देना सीखा है तूने  
देख के दिल ये आहत है
तू है प्यार दया का सागर
तेरे कर्ज चुकाना पाऊँ माँ
तू है जन्नत इस धरती पर माँ |

तेरी करुणा, का कोई पार नहीं है
तुझसा कुछ भी और नहीं है
खुद तो भूखी रह लेती है
बच्चों को रोटी देती है
तेरे आगे, हर रिश्ता छोटा
तू है सबसे - सबसे बढ़कर मेरी माँ
तू है जन्नत इस धरती की माँ |

पुष्पेन्द्र "पुष्प" 

4 comments:

Anonymous said...

are vaah jabaab nahi aapka mama ji, aap sach me bahut achhe lekhak ho, bahut sundar kabitaa hai,bahut achha laga padhkar,

**** dilip

Anonymous said...

bahut khub..hirdesh

Anonymous said...

bahut bahut sundar beta, mere paas is kavitaa ke liye sabd hi nahi hai beta,tum bahut bade lekhak bno,

** shiila devi

PANKAJ K. SINGH said...

shaandaar geet