"वाबस्ता" को मैंने पढ़ा कई
बार पढ़ा जब भी पढता हूँ कुछ नया मिल जाता है हर एक शेर पर दाद निकलती है और दिल
करता है जनाब पवन सहब के वो हाथ चूम लूँ जिनसे इतने गहरे शेर मखमली अंदाज में लिखे गए है | हर शेर लफ्जों से गुजर कर जहन में समा जाता है और रोम रोम पुलकित
हो उठता है फिर दिमाग सोचने पर मजबूर हो जाता है की क्या ऐसा भी करिश्माई कोई लिख
सकता है | बाबस्ता को पढ़ने से पूर्व मैंने कई दिग्गज शयरों को पढ़ा मगर वो रूहानी
अहसास बो जिंदादिली कहीं नजर नहीं आयी | मै ऐसा इस लिए नहीं कह रहा कि महान शायर
जनाब ”पवन कुमार” जी मेरे बड़े भाई है अपितु मैंने उनको यहाँ सिर्फ और सिर्फ एक लेखक के तौर
प्रस्तुत किया है |
और मै ये बात पूरे विश्वास
के साथ कह सकता हूँ कि वे देश के चुनिन्दा शयरों में से एक है|
"बशीर बद्र" साहब का शेर जनाब "पवन" साहब पर चरितार्थ होता है ......
"हम भी दरिया है हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा "
बाकई वे दरिया ही नहीं अथाह गहरा सागर है
जो खुद तो शांत रहते है पर उनके कारनामे बोलते है।
वे जितने अच्छे शायर है उतने ही विख्यात प्रशासक भी है उनकी प्रतिभाएं असीमित है ।
और चलते चलते बाबस्ता की नज्र चन्द शेर ......
"बशीर बद्र" साहब का शेर जनाब "पवन" साहब पर चरितार्थ होता है ......
"हम भी दरिया है हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा "
बाकई वे दरिया ही नहीं अथाह गहरा सागर है
जो खुद तो शांत रहते है पर उनके कारनामे बोलते है।
वे जितने अच्छे शायर है उतने ही विख्यात प्रशासक भी है उनकी प्रतिभाएं असीमित है ।
और चलते चलते बाबस्ता की नज्र चन्द शेर ......
"वाबस्ता” हर रोज नया अहसास
है |
कितनी बार पढ़ी है लेकिन
बाकी अब तक प्यास है ||
“वाबस्ता” या जादूगरनी हर
एक शेर छलावा है |
इसको पढ़ के कुछ भी पढ़ना,
पढ़ना एक दिखावा है ||
“वाबस्ता” की बाबस्तगी यूँ
सर चढ़ कर बोल उठी |
हर एक “शेर” तराशा हीरा, हर
एक “नज्म” है खोज नयी ||
“वाबस्ता” का पी कर प्याला
|
हमने महाग्रंथ पढ़ डाला ||
"वाबस्ता" के हीरे-पन्ने चमक
रहे बाजारों में |
पुस्तक पुस्तक चर्चा इसका किस्से
है अख़बारों में ||
पुष्पेन्द्र "पुष्प"
1 comment:
hey maharishi pawan shishya pintu ...
aayushmaan bhav ... kirti maan bhav ...
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