एक नई कविता की खोज
हर दिन हर पल
तुम्हें समर्पित
नदिया सागर पवन घटाएँ
जुगनू हो या तितली,पंक्षी
हरियाली या पेड़ की ओट
बातों में हालातों में
सावन की बरसातों में
दूर निकल जाता हूँ
अक्सर यादों के बाजारों में
सूरज चाँद सितारे देखे
इंसानों में शैतानों में
राहों में चौबारों में
फूलों की खुशबु हो या
भंवरों की गुन गुन
हाथों की चूड़ी हो या
पायल की छन छन
ईश्वर तेरे घर में खोजा
होली दिवाली या हो रोजा
सहरा की भी छान के मिटटी
घर को थक कर आता रोज
एक नई कविता की खोज
पुष्पेन्द्र "पुष्प"
5 comments:
wahut khub kya bat he aacchi khoj he kavita ki mama ji
naii kavita ki tumhari khoj bahut atulniiy , bahut saraahniiy, bahut adbhut hai,
घर को थक कर आता रोज
एक नई कविता की खोज,
बहती रहती तेरी नोज़ ,
क्यों नहीं लेते हैवी डोज़,
खाके देखो लौकीज़ लौंज ,
एक नई कविता की खोज !!
** पिंकज कठेरिया , सगौनी ( बंडाइल )
हम नाएं सुनिएँ तेई रोज , लाद दओ जू हम्पे बोझ ,
तुम हो निरे सिर्री BECAUSE, जा दाएं नाय मनैइयें भैया दौज!!
** रुकुमकेश चिच्चा ( पम्प बाले )
रुकुमकेश चिच्चा और बंडाइल वारे पिंकज के कमेन्ट बहुत नीके रहे... !
PK
कविता की खोज में रचनाकार कहाँ कहाँ नहीं विचरता, इस कविता के माध्यम से प्रकट होता है.....! ख्यालों को उफक बख्शा है तुमने इस कविता के माध्यम से हम यही कहेंगे की कविता ने मन मोहा और बार बार पढने पर विवश किया.
Pk
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