ईश्वर का वरदान है माँ
हम बच्चों की जान है माँ
मेरी नींदों का सपना माँ
तुम बिन कौन है अपना माँ
हम बच्चों की जान है माँ
मेरी नींदों का सपना माँ
तुम बिन कौन है अपना माँ
कभी भाई, कभी बहन, कभी पिता बन जाती माँ
ग़र ज़रूरत पडे तो दुर्गा भी बन जाती माँ
ऐ ईश्वर धन्यवाद है तेरा दी मुझे जो ऐसी माँ
है विनती एक यही तुमसे हर बार बने ये हमारी माँ
ग़र ज़रूरत पडे तो दुर्गा भी बन जाती माँ
ऐ ईश्वर धन्यवाद है तेरा दी मुझे जो ऐसी माँ
है विनती एक यही तुमसे हर बार बने ये हमारी माँ
***प्रभाकर माचवे
प्रभाकर माचवे की यह कविता मुझे बरबस ही याद आ जाती है जब में माँ को याद करता हूँ...... सच कहूं तो ''माँ''.......... एक ऐसा मोहक बंधन है .... एक ऐसी प्यारी भावना है .... शब्दों में बाँध पाना जिसे संभव नहीं.. हम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं की उसने न केवल हमे माँ दी.. वरन ऐसी माँ दी जिसने अपने वात्सल्य , स्नेह, प्रेम और संरक्षण से हर पल हमें तराशा... हमे जिंदगी से मुकाबला करना सिखाया...मूल्यों और नैतिकता का पाठ न केवल लगातार पढ़ाया , बल्कि उसे अच्छी तरह रटाया... आज हम सभी भाई ज़िन्दगी में जो भी कुछ जाने हैं... सीखे हैं...किसी लायक हो पाए हैं .....सब हमारी माँ की दुआओं .. उनकी रात दिन की प्रार्थनाओं का ही असर है !
हम भाईओं को पालने में उन्होंने अपनी हस्ती मिटा दी ...पूरी जिंदगी उन्होंने कोई शौक नहीं किये... कोई फरमाइश नहीं की ...जो भी थोडा बहुत पैसा पिताजी अपनी नौकरी में देते रहे ..... एक-एक पैसा बचाकर उन्होंने उसे घर की ...... बच्चों की बेहतरी में लगा दिया... उन्होंने घर, परिवार, समाज में बड़ी मुश्किलों का सामना किया और अर्जुन की तरह एक ही लक्ष्य बनाकर बच्चों की परवरिश में लगी रही........ उनकी तमाम कुर्बानिओं ने मेरी रूह पर कितना असर डाला है ...... मैं बता नहीं सकता..!
घर-परिवार की परवरिश में पिताजी उनको बहुत समय न दे सके...... सो बिना घबराये माँ ने अकेले ही मोर्चा संभाल लिया........हालात ने उन्हें कई बार बेज़ार कर के रख दिया पर हिम्मत नहीं हारी....साध्वी॥ धर्म निष्ठां ॥ संस्कारवान आदर्श माँ का साथ जैसे बस परमात्मा देता रहा....माँ खुद कोई बहुत उच्च शिक्षा प्राप्त न थी पर हमे वे बहुत अच्छी शिक्षा देने को मानो संकल्पबद्ध थी !
आज उनके संघर्षों के प्रतिफल.... यानी हम बच्चे आज बड़े हो गए हैं.....पर आज भी वे बच्चों की तरह हम पर ... हमारी कमजोरीओं पर बराबर ध्यान देती हैं....... हमे सिखाती हैं...हमे मूल्यों , धर्म और नैतिकता की सच्ची राह पर चलने की शिक्षा देती हैं......उन्होंने समाज गरीबों कमजोर लोगों की मदद के लिए हमे सदैव प्रेरित किया है ! माँ ने यूं तो हम चारों को ही बड़ा प्यार दिया... पर सबसे ज्यादा प्यार शायद बड़े भैया को दिया.......उन्होंने भी माँ का बड़ा ख्याल रखा है....बहुत मान रखा है ...मैं इस ज़िन्दगी में शायद उतना न कर सकूं.....कुछ कमी रह गयी है.....माँ मुझे अगले जन्म में मौका ज़रूर देना ... भैया मेरी भी कमी पूरी कर रहे हैं... उन्हें सादर प्रणाम करता हूँ ......वैसे भी मेरा उनसे गहरा रिश्ता है ... उनके बिना मैं कुछ भी नहीं... आज माँ को देखता हूँ तो वे कुछ संतुष्ट .. प्रसन्न तो नजर आती हैं ... उनके संघर्षों की तुलना में हम सब भाई मिलकर भी उतना तो नहीं कर सकते कि उनके ममत्व की बराबरी कर सके......पर उनकी आँखों में ख़ुशी के चंद आंसू भी ला सके तो... हम अपनी ज़िन्दगी को कुछ सार्थक कर पांएगे ..... एक महान माँ...श्रीमती शीला देवी.... को उसके पुत्रों-भतीजों और सिंह सदन के हरेक बच्चे की ओर से शत-शत नमन ......चरण स्पर्श... !
कुदरत में हर चीज़ है...और..सब इन्साफ से बननी है ... माँ तुम धन्य हो... तुमने अपने लिए दुःख , तकलीफे, तंगी, मुश्किलें ले ली.... ताकि तुम्हारे बच्चों की झोली कुदरत खुशियों से भर दे....!
तुम महान हो माँ .... सच में महान हो.........अपने बच्चों को कभी मत छोड़ना.... हम से गलतियाँ होगी ही ...हमे माफ़ करती रहना....!
बस याद रखना ...तुम्हारे बिना हम सब जी न पांएगे......तुम से हमारी दुनिया रोशन है.....तुम्हारी छाया ...तुम्हारे साए के नीचे हम चैन से जी रहे हैं .....!
हम तुमसे हैं... तुम्हारे बिना हम कुछ नहीं हैं....कुछ भी नहीं........कुछ भी नहीं.....! !
* * * * * PANKAJ K. SINGH
4 comments:
भैया बहुत ही सुन्दर लिखा
आपके दिल की बात सुन कर मज़ा आगया
बल्कि आज आपने मेरी नजरों में अपना स्थान और ऊँचा
करलिया है | आज पता चला इस फौलाद के से जिस्म में
एक कोमल सा दिल भी है | भैया अब आप बिलकुल सही राह पर है
और इसी राह पर चलते रहना | आप तो इस सिंह सदन की दीवार है |
आप ने बुआ जी के बारे में बेहद उम्दा लिखा है उनके जैसी माँ किस्मत
वालों को ही मिलती है |
बड़े भइया के बारे में भी अपने सही लिखा है उनके बगैर हम सब का कोई बजूद नहीं है
वो जो करते है वही धर्म है | उनके निर्णय पर हम सभी भाइयों को कोई सोचने की
कोई जरुरत नहीं होती | में उन्हें सत सत प्रणाम करता हूँ | अभिनन्दन करता हूँ |
और पंकज भइया आप को आपकी सह्रदयता पर प्रणाम करता हूँ |
पुष्पेन्द्र सिंह
पंकज....
दिल लूट लिया मेरे बच्चे.........तुमने तो लूटा ही, पिंटू ने भी आँखे नाम कर दीं.......!
पकु....
मैं क्या लिखूं....बस जो लिखा है ''मम्मी" उससे कहीं बढ़ कर हैं.
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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